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हिन्दू होने पर भी तो नहीं मिलता फ्लैट!!!

Yatharth-यथार्थ
Yatharth-यथार्थ
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taken from my personal blog bulbula.blogspot.com

“मुस्लिम होने पर नहीं मिला फ्लैट”, “नहीं मिली नौकरी” की हैडलाइन, अखबारों, ऑनलाइन संस्करणों, और दूरदर्शन पर लगतार सुर्खियाँ बटोर रही है। न्यूज़ चैनल पर देश में गणमान्य बुद्धजीवी बहस भी करते नज़र आये। आकाशवाणी पर रेडियो जॉकी भी इस खबर पर तीखी प्रतिक्रिया देते सुने जा सकते है । यदि वाकई भेदभाव हुआ है तो विरोध होना भी चाहिये, इस तरह का बर्ताव लोकतन्त्र की मुखालफत करता नज़र आता है। किन्तु इस तरह की हैडलाइन और उसके पीछे के पूरे सन्दर्भ और सच को समझना भी हर उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है जो लोगों के सामने ये खबर ला रहा है। इस तरह की खबरें पढ़कर चकित होना स्वाभाविक है।

इस तरह की विवादस्पद खबरों में जब तक दोनों पक्षों की बात ना रखी जाय तब तक खबर पूरी ही नहीं होती। और अगर केवल एक पक्ष की राय रखी गयी है तो यकीन माने की खबर पक्षपाती ही मानी जाएगी।



जिक्र लाजिमी हो चला है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत विविधताओं का देश है। हर व्यक्ति को अपनी संस्कृति और अपनी संस्कृति के लोग प्यारे होते है। सम्पत्ति का हक़ भी संविधान प्रदत्त है। उदहारण स्वरुप यदि कोई व्यक्ति विशेष अपना घर किराये पर केवल उस व्यक्ति को देना चाहता है “जो शाकाहारी हो”, तो एक मुस्लिम को, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के तटीय क्षेत्रों के हिन्दुओं को , एक ईसाई  को या एक सिक्ख  को घर घर देने में उसे गुरेज हो सकता है। इन्कार करने का तरीका मकान मालिक की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है। इस वाकये में मीडिया अगर हैडलाइन बनाये कि “मुस्लिम होने पर नहीं दिया घर” तो ये दुखद और निन्दनीय ही कहा जायेगा।  ये मीडिया की अवसरवादिता भी कहीं जा सकती है। गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में सुर्खियाँ बटोरने की कोशिश भी। इस तरह की घटनाओं के पीछे कई कारक हुआ करते है। उसमे से एक को उठकर सुर्खी बना देना चिन्ता का विषय है।


उत्तर प्रदेश का निवासी जब बंगलौर जैसे शहर में एक घर या फ्लैट किराये पर लेने जाता है। पहला प्रश्न यही होता है यू पी के हो? इस नाते बहुतायत लोग घर देने में दिक्कत करते है। समूचे दक्षिण भारत में मुम्बई में उत्तर प्रदेश के निवासियों को इसी तरह परेशान  किया जाता है। महाराष्ट्र और खासकर मुम्बई में हालात जगजाहिर है।  कुछ मकान मालिक जो प्रोफेशनल है अपना घर दे देते है और कुछ जो इमोशनल है वो नहीं देते। क्या करेंगे आप। उत्तर प्रदेश के किसी शहर में जाकर घर किराये पर लगे तो वहाँ लोग धर्म से पहले आपकी जाति पूछ लेंगे!! बहुतायत मामलात में जाति के प्रश्न का जवाब ही घर के मिलने न मिलने का अंतिम कारण होता है। छोटे शहरो में जहाँ प्रोफेशनलिस्म ज्यादा नहीं वहाँ लोग जान पहचान के लोगो को घर देना पसन्द करते है। कुल मिलाकर घर इस मुद्दे पर, क्षेत्रीयता, जाति, धर्म, आर्थिक स्थिति, संस्कृति  इत्यादि कई कारण होते है।


केवल मुस्लिमों  के मुद्दे को प्राथमिकता देकर छापना उचित नहीं ये सामाजिक विद्वेष को  बढ़ावा देने वाला कदम है । किन्तु साथ ही साथ ये भी समझ लेना जरूरी है की भारत देश में अप्रवासीय भारतीयों के भी मकान इत्यादि है, जो मकान को किराये में उठाते समय सुरक्षा और सावधानी बरतने पर ज्यादा यकीन रखते है। ये गौरतलब है की विदेशों  में पिछले कुछ समय में इस्लामिक आतन्कवाद के चलते इस्लाम की छवि को भी गहरा धक्का लगा है। खासकर इराक, सीरिया, नाइजीरिया में हो रही घटनाओं के बाद। अगर ऐसे में अप्रवासीय भारतीय यदि मन में  पूर्वाग्रह बना लेते है तो संवैधानिक नहीं है। जन्म से ही भारतीय नागरिक चाहे वो किसी धर्म का हो वो भारतीय पहले है। सर्वधर्म समभाव की भावना को आगे बढ़ाते रहने का दायित्व मीडिया पर भी है। सस्ती लोक्रियता बटोरने के लिये बिना जाँच पड़ताल के इस तरह की खबरों को प्रकाशित करना और दूसरे पक्ष की बात तक ना रखना न्यायप्रिय तरीका नहीं है।

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